मनरेगा (MGNREGS) में सुधार का बेहतर तरीका (A Better Way to Fix MGNREGS)

मनरेगा (MGNREGS) में सुधार का बेहतर तरीका (A Better Way to Fix MGNREGS)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) खतरे में दिख रही है। अगर हालिया मीडिया रिपोर्टों पर विश्वास किया जाए, तो इसमें बड़ा बदलाव किया जा सकता है।

मनरेगा (MGNREGS) को 2003 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) द्वारा एक विधायी विधेयक लाकर शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों के व्यक्तियों को एक वर्ष में कम से कम 100 दिनों के लिए निर्धारित मजदूरी दर पर काम उपलब्ध कराना था।

कोविड (Covid) के वर्षों के दौरान, इस योजना ने ग्रामीण मजदूरों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मनरेगा (MGNREGS) के फंड का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक संकट (economic distress) के स्तर के साथ सीधा संबंध रखता है।

2023-24 में केंद्र के कुल खर्च में मनरेगा (MGNREGS) का हिस्सा केवल 1.9% है। सरकार ने दो कारणों से इसकी समीक्षा की है क्योंकि मनरेगा (MGNREGS) ने सरकार के लिए चिंताएं पैदा की हैं:

  1. योजना की पूरी लागत केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाती है, लेकिन राज्य योजना के तहत किए गए काम की निगरानी करते हैं।
  2. योजना के प्रावधानों का दुरुपयोग - निगरानी की कमी, और योजना के फंड का उपयोग स्कूलों, अस्पतालों आदि के निर्माण के लिए किया जा रहा है।

अगर राज्यों को योजना की लागत साझा करने के लिए कहा जाता है, तो कानून में भी संशोधन करना होगा। मनरेगा (MGNREGS) ग्रामीण भारत में रोजगार संकट (jobs crisis) से निपटने के लिए एक उपयोगी अल्पकालिक साधन है। केंद्र को अपने वित्तीय बोझ (fiscal burden) को कम करने के बजाय इसके कार्यान्वयन की समस्या को ठीक करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।