रुपये के मूल्यह्रास (Rupee Depreciation) के पीछे के मुख्य कारक (Key Factors)

मजबूत होता अमेरिकी डॉलर (Strengthening US Dollar): डॉलर इंडेक्स (Dollar Index) 1.24% बढ़कर 109.84 हो गया, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है। मजबूत नौकरी के आँकड़े, लंबे समय तक उच्च ब्याज दरों की उम्मीद, और बढ़ते अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड (US Treasury yields) ने डॉलर को और अधिक आकर्षक बना दिया है।
बढ़ते व्यापार युद्ध का डर (Escalating Trade War Fears): अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) के कनाडा, मेक्सिको और चीन पर लगाए गए टैरिफ (tariffs) ने वैश्विक व्यापार तनाव को बढ़ा दिया है। कनाडा और मेक्सिको ने, जो अमेरिका को $840 बिलियन से अधिक का सामान निर्यात करते हैं, जवाबी कार्रवाई की घोषणा की है। चीन को संभावित 10% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जिसने युआन (Yuan) को कमजोर कर दिया है, जिससे भारतीय रुपये पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है।
विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investor - FII) बहिर्प्रवाह (Outflows): अक्टूबर 2024 से FIIs भारतीय संपत्तियों को तेजी से बेच रहे हैं, जिससे Q3 FY25 में $11 बिलियन की निकासी हुई है, जिसने मुद्रा पर और दबाव डाला है।
बढ़ता व्यापार घाटा (Widening Trade Deficit): भारत का व्यापार घाटा (trade deficit) $188 बिलियन तक पहुँच गया है, जो FY24 से 18% अधिक है, जो विशेष रूप से कच्चे तेल (crude oil) पर उच्च आयात निर्भरता को दर्शाता है।
आरबीआई (RBI) का हस्तक्षेप और मौद्रिक नीति दृष्टिकोण (Monetary Policy Outlook): भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) पिछले सात हफ्तों में $3.3 बिलियन के भंडार बेचकर विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप (forex interventions) के माध्यम से मुद्रा की अस्थिरता (currency volatility) का प्रबंधन कर रहा है। हालांकि, बढ़ती महंगाई की चिंताओं के कारण, सभी की निगाहें इस सप्ताह के अंत में होने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा (monetary policy review) पर टिकी हैं।